सडकों पर सन्नाटा
पहले जैसा चहल-पहल नहीं
बस इक्के-दुक्के लोग
वह भी मुख ढक कर
यह हो क्या रहा है
समझ नहीं पा रहा
इंसान की यह आदत तो नहीं
वह तो ऐसा नहीं है
कितनों को देखा
पान की पीक से लाल करते हुए
सडक पर पीच पीच थूकते हुए
जहाँ बैठे वहीं थूका
चलते-चलते नाक साफ किया
कहीं भी पोछ दिया
आज तो मुख पर लगाम
नहीं लगा तो भुगतेगा
भयंकर परिणाम
ऐसे ही रहे
यहाँ वहाँ न थूके
बीमारी को निमंत्रण न दे
स्वयं भी स्वच्छ रहें
मुझे भी रहने दे
कल वह पल भी आएगा
मुख भले न ढके
पर थूकना भूल जाए
वह भी मुस्कराए
मुझे भी अपने साथ मुस्कराने दे
उसका और मेरा तो साथ
हर वक्त का
बंदिशो में न रहें
स्वेच्छा से अपना और मेरा ख्याल रखें
मैं तो हमेशा साथ चली हूँ
चलती रही हूँ
बस अब मास्क हटे
खुल कर बतियाओ
चहलकदमी करों
दौड़ लगाओ
मुस्कराओ
तब मैं भी अपने मुसाफिर को देख देख कर हर्षित
यह सन्नाटा तो मुझे नहीं भाता
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