Thursday, 2 July 2020

फिर याद आया वह गुजरा जमाना

वह अस्सी का दशक था
क्या जमाना था
जब भगवान टेलीविजन पर आते थे
बढे बूढे हाथ जोड़ प्रणाम करते थे
अरूण और दीपिका
सचमुच के राम और सीता होते थे
रामायण आते ही घर में सन्नाटा
बाकायदा आरती होती थी
फूल चढाये जाते थे
मजाल कि कोई बीच में चू चा करें
सब टेलीविजन को घेर कर बैठ जाते
जैसे सत्यनारायण की कथा हो
लगता था उनके घर में साक्षात ही
नारायण पधारे हो
कैकयी को कोसना
राम वन गमन के समय
ऑसू की अविरल धारा का बहना
भरत प्रेम को देख मंत्रमुग्ध हो जाना
रावण को जम कर गालियां देना
ऐसा लगता था
राम फिर अवतरित हो आए हैं
इस धरती पर
मानना पडेगा रामानंद सागर को
जिन्होंने रामायण के सागर में सबको नहला दिया
प्राचीन काल में बाबा तुलसीदास ने मानस को घर घर पहुँचाया
मर्यादा पुरुषोत्तम राम को बनाया
आधुनिक काल में रामानंद सागर ने रामायण को घर घर पहुँचाया
नई पीढ़ी को अवगत करवाया
रामायण के पात्रो से परिचित करवाया
जो भूल रहे थे
उसे फिर याद दिलाया
आज फिर वहीं दिन आए हैं
बीस का दशक
घर में सब बंद
तब रामायण सबको भा रहा है
सच ही तो है
राम बिना भारत नहीं

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