अपने ही शर्तों पर जीना
हर चीज को करीने से रखना
हम जिससे जुड़े उसे मौल्यवान बना देना
जिस चित्रकला को हम एकाडमिक में उतना तवज्जों नहीं
उस चित्रकला के पीरियड में पूरी कक्षा सर झुकाए चित्रकारी कर रही
किसी विषय का सामान लाना भूल जाए पर ड्राइंग का नहीं
मजाल है कोई चूं कर दें
अनुशासन प्रिय
स्वयं भी अनुशासित और दूसरों से भी यही अपेक्षा
फिर वह खाने की बात हो या पहनने की
कभी भी किसी भी समय कुछ भी खा लेना
यह उनकी फितरत में नहीं
साडी पर सलवटें पडी कभी दिखी ही नहीं
घर भी एकदम करीने से
फिर चाहे वह किचन हो या गैलरी के पौधे
अपने कपडे स्वयं सीना
हर काम व्यवस्थित
यह तो एक कला के शिक्षक में ही हो सकता है
हाँ स्वभाव में कडकपन अवश्य
लेकिन जिसने पास से देखा है वह उनके मन के कोमल पहलू से भी अवगत होगा
झुकना भी कोई उनसे सीखे
जब कुछ बोल देती और बात न करने पर फिर पहल करती
क्या हुआ है बोल क्यों नहीं रही । गुस्से में है क्या ?
उनका कहना कि बच्चे भले गोल की जगह चौकोर चेहरा बनाए पर दूसरा कोई मदद नहीं करेंगा
खुद बनाएंगे और खुद सीखेगे
इस तरह न जाने कितनों को कला में पारंगत बनाया
माँ नहीं बनी पर ममता से भरपूर
छात्रों के लिए । अपने परिजनों के लिए भी
कहा जाता है न
जो आग में हाथ डालेंगा उसी का हाथ जलेगा
जो दूर खडा हो उसका क्या ?
तभी तो जब अनुशासन की बात आती थी तब सबसे पहले मिसेज जोग की याद आती थी
शायद यह मेरा अनुभव है कि मैं बहुत जूनियर और छोटी होने के बावजूद
विपरीत स्वभाव होने के बावजूद बहुत बातें होती थी यहाँ वहाँ की
गाॅसिप से दूर
जो मन में वही जुबान पर
दोहरा व्यक्तित्व नहीं
सामान्य और राजनीति पर
हम तो आमने-सामने बैठे हमेशा
उनके क्लास की हिंदी हमेशा मुझे मिली
और मैं भी सबसे पहले मार्क लिस्ट तैयार करती
क्योंकि उनका काम समय पर और सबसे पहले
मजाल है कहीं गडबड हो
लिखावट हो या मार्क्सशीट । एकदम नीट क्लीन
यहाँ तक कि उनका खाने का डब्बा और करीने से रखी रोटी
रतन नाम था उनका
सच में अनमोल शख्सियत थी
आज बहुत सी बातें याद आ रही है
जैसे लग रहा है
अभी डांटेगी फिर थोड़ी देर बाद
इधर आ । क्या हुआ ।बता
उनकी डांट में भी प्यार
ऐसा बहुत बिरले होते हैं
होते कुछ है और दिखते कुछ हैं
ममता और अनुशासन से भरी कठोरता
यह सबमें नहीं होती
भावपूर्ण श्रंद्धांजलि
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