Sunday, 4 October 2020

बलात्कारी के बाप की पीड़ा

वह वंश का चिराग था
नाम रोशन करने वाला था
जन्म होने पर खुशी मनाई गई
मिठाईया बांटी गई
सीना गर्व से चौडा हो गया
खानदान आगे बढेगा
वंश चलेगा
बुढापे की लाठी बनेंगा
जो सपने देखे थे वह पूरा करेंगा
आज सारे सपने चकनाचूर हो गए
इसने तो वह काम किया
जिससे सर नीचा हो जाए
पूरा खानदान बदनाम
किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रखा
वंश क्या चलेंगा
अब वह जेल में सडेगा
बुढापे की लाठी तो दूर
जीना दूभर कर दिया
यह चिराग तो समय से पहले ही टिमटिमा रहा है
न जाने कब बुझ जाएं
किसी के घर की रोशनी को बुझाया है
उसकी इज्जत तार तार कर दी है
दरिंदगी की हद भी पार कर दी है
तब इनको कौन बख्शेगा
कभी जो सीना गर्व से चौडा हुआ था
आज वह स्वयं को कोस रहा है
यह चिराग पहले ही क्यों न बुझ गया
आज शर्म आ रही है अपने पिता होने पर
ऐसी संतान से तो निसंतान होना अच्छा

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