अंधेरा बहुत घना है
बहुत लंबा है
बहुत डरावना है
यह ऐसे ही रहेंगा ??
तब क्या ??
मन मस्तिष्क सुन्न पडा जा रहा है
सारी सोच धरी की धरी
कोई उपाय नहीं सूझ रहा है
धैर्य रखिए
यहाँ स्थायी कुछ भी नहीं
हर रात की सुबह अवश्य होती है
सूर्य भी इंतजार कर रहे हैं
कब मैं चलूँ
अपना प्रकाश बिखेरू
जग को रोशन करूँ
हर चीज आनी जानी है
कुछ भी नहीं ठहरता
वक्त भी नहीं
वह तो चलायमान है
आज नहीं तो कल
प्रकाश को तो आना ही है
उसे कोई रोक नहीं सकता
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