कितना झमेला
कब इनसे छुटकारा
झेलते झेलते उम्र कट गई
और ये हैं कि पीछा ही नहीं छोड़ते
एक खत्म नहीं कि दूसरा सर पर सवार
बस लगे रहो
अपना सर खपाते रहो
बारिश की बूँदें जैसे अचानक झम झम बरसने लगती है
ऐसे ही ये भी झम झम करते आ जाते हैं
पता नहीं कहाँ ताक लगाए बैठे रहते हैं
कभी कभी तो सचेत होने और सोचने का मौका भी नहीं
हम अवाक रह जाते हैं
जिस बारे में सोचा नहीं
वह हो जाता है
हम उसमें घिर जाते हैं
वह अपनी गिरफ्त में जकड़ लेता है
हम तमाम कोशिश करते हैं
उससे छुटकारा पाने की
झमेला वह झूला है
जो इधर-उधर झुलाता है
चैन से बैठने तक नहीं देता
झमेले न हो
तब कितना सुकून
हाय झमेला
कब तू हमें छोड़ेगा अकेला
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Tuesday, 10 November 2020
हाय झमेला
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