जीना भी यहीं
मरना भी यहीं
जन्म और मृत्यु
इनके बीच में जो है
वह है जिंदगी
क्या और कैसे
कब और कहाँ
स्थिर या अस्थिर
गम या खुशी
इन सबके बीच में
उलझता यह जीवन
हम झूलते रहते हैं
वह झूलाती रहती है
कभी पेंग मार कर ऊंचाई पर
कभी धडाम से औंधे मुंह जमीन पर
इसका कोई भरोसा नहीं
तब भी यह दुनिया भरोसे पर ही कायम है
कब कैसी करवट
यह नहीं जानता
तब भी जीता है
बहुत कुछ आशा आंकाक्षा रखता है
तभी तो कहा जाता है
यह वह पहेली है
जो कभी सुलझती नहीं है
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Monday, 2 November 2020
जिंदगी एक पहेली
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