औरत बन कर तो देखों
वे बुद्ध बन गए
भगवान बुद्ध
अर्ध रात्रि को चुपचाप सोती हुई पत्नी और बेटे को छोड़
सत्य की खोज में
राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध
वे विवाह के मंडप से उठ
न किसी का विचार न आचार
स्व मन की कर
मन की खोज में
मन का अभ्यास कर
स्वामी रामदास बन गएँ
वे संसार की छोड़
परिवार की छोड़
अपने ही मन की कर
वन में घंटों बैठ
भजन कीर्तन में मग्न
अभंग किया
और तुकाराम महाराज हुएं
वे रत्नावली के प्रेम में आसक्त
धिक्कारने पर
गंगाघाट पर बैठे
रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास बने
किसी ने नहीं पूछा
क्या हुआ
यशोधरा और राहुल का
अगर वह गई होती
सत्य की खोज में
अगर वह गई होती
मन की खोज में
भरे मंडप को छोड़
अगर वह भजन में मग्न हुई होती
घर - गृहस्थी की जिम्मेदारी छोड़
तब क्या उसे
बुद्ध , रामदास , तुकाराम
बनने दिया गया होता
इतनी सहजता से उसे स्वीकारा गया होता
उसका श्लोक?
उसका अभंग ??
उसका सत्य की खोज ??
इसके विपरीत उसकी अग्नि परीक्षा ली होती
सीता की तरह
जहर दिया जाता
मीरा की तरह
बहिष्कृत किया जाता
सारा दोष उस पर मढा जाता
आज भी वही बात है
समाज की मानसिकता बदली नहीं है
कुछ गलत हुआ
तब उसकी जिम्मेदार औरत ही है
उसका पहरावा
उसका स्वभाव
यहीं कारण दिया जाता है
समय बदला है समाज नहीं
मानसिकता नहीं
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