Thursday, 28 January 2021

नये जोश नये सपने

मैं रोज उगते हुए सूरज को देखती हूँ
ख्याल आता है
कितने आहिस्ता आहिस्ता से लालिमा बिखेरते
पूरे आसमान पर छा जाता है
सुबह सुबह सौम्य कोमल
दोपहर में प्रखर ताप
संध्या समय फिर आहिस्ता आहिस्ता अस्त होता जाता है
सुबह बालपन
दोपहर युवावस्था
संध्या प्रौढ़ता से वृद्धत्व की ओर जाते जाते अंत में बिदा
ओझल हो जाना
प्रकृति में ही जीवन सार समाया है
संदेश देता जाता है
प्रकाश बनो
स्थायी यहाँ कुछ नहीं
आज मैं
कल तुम
परसों कोई और
यह आना - जाना लगा रहेंगा
हर सुबह की शाम
हर दिन की रात
हर दिन नया
नव प्रभात
नयी आशा
नया गुंजार
सूरज का आगमन भी नवीन
कल तो गया
आज है साथ
उसको पहचानो
नये जोश नये सपने
साकार करों

No comments:

Post a Comment