मैं रोज उगते हुए सूरज को देखती हूँ
ख्याल आता है
कितने आहिस्ता आहिस्ता से लालिमा बिखेरते
पूरे आसमान पर छा जाता है
सुबह सुबह सौम्य कोमल
दोपहर में प्रखर ताप
संध्या समय फिर आहिस्ता आहिस्ता अस्त होता जाता है
सुबह बालपन
दोपहर युवावस्था
संध्या प्रौढ़ता से वृद्धत्व की ओर जाते जाते अंत में बिदा
ओझल हो जाना
प्रकृति में ही जीवन सार समाया है
संदेश देता जाता है
प्रकाश बनो
स्थायी यहाँ कुछ नहीं
आज मैं
कल तुम
परसों कोई और
यह आना - जाना लगा रहेंगा
हर सुबह की शाम
हर दिन की रात
हर दिन नया
नव प्रभात
नयी आशा
नया गुंजार
सूरज का आगमन भी नवीन
कल तो गया
आज है साथ
उसको पहचानो
नये जोश नये सपने
साकार करों
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Thursday, 28 January 2021
नये जोश नये सपने
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