Sunday, 31 January 2021

आज की सुबह

आज की सुबह अलसायी सी
उठने का मन ही नहीं कर रहा था
रोज रोज वही वही
तंग आ गई
मैं इन रोजमर्रा के कामों से
आज नहीं उठूँगी
कुछ काम नहीं करूंगी
जिसको जो करना हो करें
मेरी बला से
सबका ठेका मैंने ही ले रखा है
नहीं उठी
चुपचाप चादर ओढ पडी रही
सब आ आकर झांक रहे
आज मम्मी की तबियत ठीक नहीं है
कोई आवाज नहीं
सारे घर में सन्नाटा
सब चुपचाप उठ गए
अपना काम कर रहें
न चाय - नाश्ता पर ना नुकुर
न उठाने की झंझट
न टोकम टाकी
आखिर हार गई
यह सन्नाटा जरा भी नहीं भाया
चादर झटक बिस्तर से उतरी
साडी कमर पर खोंस
भोजन की तैयारियों में लग गई
आज तो रविवार है
छुट्टी का दिन
सब घर पर है
सबकी पसंद का खाना बनाऊगी
जी भर कर खिलाऊगी
यह आराम वाराम छोड़ो
इस सन्नाटे को गोली मारों

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