Friday, 19 February 2021

मैं त्रृणी हूँ

मैं त्रृणी हूँ
इस धरा का
मैं त्रृणी हूँ
इस मिट्टी का
मैं त्रृणी हूँ
माता - पिता का
मैं त्रृणी हूँ
गुरुजनों का
मैं त्रृणी हूँ
परिवार जनों का
मैं त्रृणी हूँ
अपने गांव - शहर का
मैं त्रृणी हूँ
अपने दोस्तों - यारों का
मैं त्रृणी हूँ
अपने पडोसियों का
मैं त्रृणी हूँ
इस समाज का
मुझे बनाने में इन सबकी बडी महत्वपूर्ण भूमिका रही है
कभी स्नेह से
कभी डांट फटकार से
कभी अनुशासन से
कुछ न कुछ सभी का योगदान है
तब जिम्मेदारी तो मेरी भी बनती है
मैं यह कैसे सोच लू
मैं अकेले ही सब कुछ कर सकता हूँ
अगर ये नहीं होते मेरे निर्माण में
मनुष्य बनाने में
तब मैं कुछ और ही होता
ईश्वर ने मुझे पृथ्वी पर भेजा है
मानव इन्होंने बनाया है
इन सब का त्रृण उतार तो नहीं सकता
पर इनका मान तो बढा सकता हूँ

No comments:

Post a Comment