Friday, 19 February 2021

जैसी जिसकी सोच

किसी ने मेरा अपमान किया
बहुत दुःख हुआ
मैं निराश हो गया
क्यों मैंने ऐसा क्या किया
जिसका ऐसा परिणाम मिला
मैं तो सबसे प्रेम से मिलता हूँ
बतियाता हूँ
बैठाता हूँ
हर आने वाले का दिल खोलकर स्वागत करता हूँ
सबको इज्जत  देता हूँ
सबसे हिल - मिलकर रहता हूँ
कभी किसी बात का घमंड नहीं करता
अपने ओहदे और पद की डींग नहीं हांकता
किसी को छोटा या तुच्छ नहीं समझता
इन सबके बावजूद सब मुझसे ईष्या करते हैं
कुछ न कुछ व्यंग करते हैं
मजाक उडाते हैं
मेरी सज्जनता और नम्रता को कमजोरी समझते हैं
अब क्या करूँ
ये तो बदल नहीं सकते
तब क्या मैं इनके जैसा बन जाऊं
उसमें तो मैं स्वयं को ही खो दूंगा
उनमें और मुझमें  फर्क क्या रह जाएंगा
यही सोच कर संतोष है
सोने का मूल्य लोहार तो नहीं जान सकता
वह तो पीटना और ठोकना जानता है
तब मैं अपना मूल्य कम क्यो करूँ
कुशल कारीगर के साथ रहूँ
ताकि तराशा जाऊं
और चमक बिखेरू
जो मेरा वैल्यू नहीं समझते
उन्हें छोड़ दूँ
दुखी होने के बजाय यह सोचूं
जैसी जिसकी सोच

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