Friday, 19 February 2021

मेरा घर जो घर न रहा

वह मकान था उसका
उसे घर बनाया था
सारी जमा - पूंजी जोड़ एक आशियाना खडा किया था
बडे - बडे सपने संजोये थे एक अदद घर  का
वह बनकर पूरा हुआ
हर जरुरत की चीज से संवारा था
उसे खूबसूरत बनाया था
मेहनत और पसीने की कमाई लगी थी
तभी तो जान से भी प्यारा था
एक गर्व होता था
ईट - गारे का मकान भले हो
भावनाओं का उसमें समंदर लहराता है
हर वस्तु हर दीवार एक याद समेटे रहती है
सब खुश हुए
गृहप्रवेश हुआ
पूजा - पाठ हुआ
भोज दिया गया
दोनों बच्चों का ब्याह हुआ
समय भी पंख लगाकर उडता रहा
कुछ वर्ष बीते
अब उसका बंटवारा हो रहा था
आधा - आधा बांट लिया गया
मैं किसके हिस्से में
यह भी प्रश्न ??
आखिर निर्णय हुआ
आधा साल इधर आधा साल उधर
अब तख्ता डाल दिया गया बरामदे में
इस बरामदे से उस बरामदे डोलता रहा
अंदर आने की सख्त मनाही
सारे सपने ढह गए
मन की इच्छा मन में रही
एक कोने में पडा बिसुर रहा
अपने ही घर में बोझ बन रहा
आते - जाते सबको देखता हूँ
किसी के पास फुर्सत नहीं
न बात करने की न हाल-चाल पूछने की
अजनबी बन पडा हूँ
अपने को कोस रहा हूँ
कुछ पैसे अपने बुढापे के लिए भी बचाकर रखा होता
तब अपने ही घर में उपेक्षित - लाचार नहीं होता
दाने - दाने को मोहताज न होता
यह घर , घर न होकर सराय लगता है
अब यहाँ कोई न अपना लगता है

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