Sunday, 7 February 2021

कहीं कुछ अधूरा

हर दिन एक नया अध्याय
जब तक समझे
तब तक दूसरे के पन्ने खुल जाते हैं
सब गडबड हो जाता है
एक - दूसरे में मिल जाते हैं
समझ नहीं आता
कौन कहाँ से शुरू
खत्म होने का तो सवाल ही नहीं उठता
रामायण और महाभारत
इस जिंदगी के अध्याय के सामने कुछ भी नहीं है
उनको तो पढकर पूरा कर लिया जाता है
यहाँ तो वक्त की तेज रफ्तार चलती है
हम भागते भागते भी न पूरा कर पाते हैं
कुछ छूटा
कुछ अधूरा रह ही जाता है

No comments:

Post a Comment