Monday, 12 April 2021

छोटा है पर सार्थक तो है

वह एक जंगली पौधा
उसके जैसे न जाने कितने उसके भाई बंद
सब चट्टान की ओट में
सुरक्षित और महफूज
एक पौधे को लगता था
उसका कोई असतित्व ही नहीं
सामने बगीचे में गुलाब मुस्कराते रहते
लाल , पीले , नीले , गुलाबी
कितने प्यारे और सुदंर
क्या लाजवाब दिखते
आते - जाते की नजरें उन पर
बरबस आकर्षित करते
इनको तो कोई पूछता ही नहीं

अनमना सा रहता
कहता खुदा से मुलाकात होगी
तब कहेंगा
वह मुझे गुलाब बना दे
अचानक वह दिन भी आया
ईश्वर ने उससे कहा
क्या करेंगा गुलाब बनकर
वह तो कांटों में रहता है
अंधड - तूफान सहता है
पर वह न माना
आखिर खुदा ने सुन ली
वह गुलाब बन गया

खिला कांटो में गुलाब बन
खूब खुश था
इतरा रहा था
संझा हुई
वह मुरझाने लगा
पंखुड़ियां टूट - टूटकर गिरने लगी
अचानक तेज झंझावात आया
वह धडाम से जमीन पर

उसके संगी - साथी कहने लगे
मना किया था फिर भी नहीं माना
अब भुगत
वह बोल पडा
आज मैं बहुत खुश हूँ
मैंने एक ही दिन का सही
संपूर्ण जीवन जी लिया
खिला भी झंझावात का सामना किया
चट्टानों की ओट से यह जीवन कहीं बेहतर
छोटा है पर सार्थक तो है

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