Sunday, 11 April 2021

समाज में रहना है न

कल से नवरात्र शुरू
माँ शक्ति की उपासना
नौ दिन पूर्ण शाकाहार
त्यौहार है पर पास में पैसे नहीं है
दाल , तेल और अनाज का भी तोटा
पर बच्चों को यह कहाँ समझ
उनको तो नानवेज खाना है
हर पडोस के घर में
क्योंकि कल से तो वर्जित

अब माँ हूँ न
क्या करू , किससे मांगू
हाथ फैलाने में भी झिझक
क्या सोचेगा कोई
दाल - सब्जी का अकाल और चाह मुर्ग - मटन की
फिर भी हिम्मत बटोर कर
पडोस की चाची से मांग लाई
घर पर जब नानवेज बना तो बच्चों के चेहरे पर खुशी जो चमक रही थी
वह देखते ही बनती थी
सब्जी को ना - नुकुर करने वाले मजे से खा रहे थे
मन को सुकून मिला
पति ने खाया तो पर उलाहना भी दिया
क्या उधार मांग कर खाना
मन तो चाहा
कह दूँ , तुम इतने ही लायक होते
तब ऐसा होता ही क्यों ??
हर चीज के लिए तरसना और बच्चों को भी तरसाना
मर - मर कर काम करना तब जाकर कुछ मिलना
वह भी तुम्हारे शराब की भेंट हो जाना
पैसा न हो तब व्यक्ति कितना मजबूर
यह मुझसे अच्छा कौन जानेगा
हर जगह नीचा देखना
शर्मदिंगी महसूस करना
यह तुम कब समझोगे
इस हालत के जिम्मेदार तो तुम ही
अब क्या कहूँ , किससे कहूँ
दिल रोता है ऊपर से हंसती हूँ
समाज में रहना है

No comments:

Post a Comment