Monday, 26 April 2021

रह गए हम और तुम

आज चेहरे पर हाथ फेरा
चेहरा खुरदरा सा लगा
सोचा कुछ  लग गया है
शीशे में  देखा तो झुर्रिया
बालों  में  पहले ही सफेदी
चलने में  भी लाचार
लगा कितना परिवर्तन
सब बदलता रहता है
जिस शरीर पर नाज था
वह दिन प्रतिदिन  क्षीण  होता जा रहा
आगे क्या होगा
यह तो कोई नहीं जानता

सब बदला पर कुछ  कुछ  नहीं  बदला
वह था तुम्हारा  प्यार
तुम्हें तो  आज  भी  मैं  वैसी ही लगती हूँ
कोई  फर्क  नहीं पड़ता
आज भी वही  हो जो बरसों  पहले थे

परिवर्तन  तो तुममें  भी
बालों  में  सफेदी
दांतों  का टूटना
पहले जैसा जोश नहीं
क्रोध  भी कम पड रहा
पहले मेरी बातों  को  नहीं  सुनते थे
अब तो मेरे  ही इर्द-गिर्द
साथी छूट रहें

अब तो मैं  और तुम  एक ही धरातल पर खडे
तुम्हें  मेरी  और मुझे  तुम्हारी  जरूरत
सब बदल गया है
रिश्ते - नाते अपने मे मशगूल
रह गए हम  और तुम ।

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