मैं जा रही थी रहने किसी के यहाँ
सोचा खूब मजा करूँगी
खेलूंगी - कुदूंगी
अब तुम्हारे पास नहीं आऊंगी
मैं तो जा रही गाँव से शहर
वहाँ बडा मजा आएगा
पर यह क्या ?
दो दिन में ही बस ऊब गई
वहाँ एक कमरे का घर
लगता था मुझे जेल का कमरा
बस एक जगह उठना और बैठना
केक - पास्ता सबका जायका बिगड गया
तुम्हारे हाथ का दाल - भात
वह नहीं किसी और के समान
तुम्हारी डांट - फटकार
में भी झलकता प्यार अपरम्पार
तुम्हारे हाथ का थप्पड़
वह भला वहाँ कहाँ नसीब
फिरती फिरूं मैं परी सी यहाँ - वहाँ
कभी घर कभी बाहर
पापा को देख हो जाती खुश
भैया से लड - झगड़कर उसको भी मार खिलवा देती
नानवेज सबसे ज्यादा मुझे
लगता इतना अच्छा
बस इंतजार करती कब आएं
दादी और बाबा की डांट का होता न कोई असर
बस हंसना आ जाता
पायल के गले में हाथ डाल गलबहियाँ
लालू की लात खाकर
ढुकु की गाली अममम तभमम
सब को बडा मिस करती
अब यह सब वहाँ कहाँ
तभी तो कहती हूँ
अब मुझे कहीं नहीं रहना
मेरी मम्मी सबसे न्यारी सबसे प्यारी
मेरा घर ही लगता बडा प्यारा ।
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