Monday, 21 June 2021

धरती सबकी है

धरती सबकी है
हमारी - तुम्हारी
पशु - पक्षी की
पेड - पौधों की
पर्वत- पहाड़ की
नदी - समुंदर की
हवा - पानी की
सूरज- चांद की
सभी में  जीवंतता
सभी में  सौंदर्य
सभी उपयोगी
सभी का समान अधिकार
सभी समान भागीदार
किसी एक की नहीं
मानव इस भ्रम में  न रहें
किसी को नुकसान पहुँचाने का हक नहीं
किसी को तोड़ने  का  अधिकार नहीं
नष्ट-भ्रष्ट करने  का भी हक नहीं
सभी को जीने  का अधिकार
विचरण करने का अधिकार
सबसे उसे फायदा ही है तब भी वह समझता नहीं
बस कांक्रीट के  जंगल बनाएं जा रहा है
अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा
जिससे सांस चल रही उसी को काट रहा
उसे नहीं पता वह क्या कर रहा है
नासमझ बन विनाश कर रहा है
जिस दिन  वह यह समझ  जाएं
उस दिन से धरती ही स्वर्ग बन जाएं

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