धूप - छाँव का खेला है
यह जीवन का रेला है
अपने - अपने रंग बदलते
यह दुनिया का मेला है
कभी घनी धूप
कभी कडाके की ठंडी
कभी घना कुहासा
कभी मुसलाधार बरसात
कभी बादलों की गडगडाहट
कभी बिजली का चमकना
फिर भी उसमें दिखता इंद्रधनुष है
कुछ- कुछ अच्छी भी लगती है
हल्की-हल्की धूप
कुछ अच्छी लगती है
गुलाबी - गुलाबी ठंडी
कुछ अच्छी लगती है
रिमझिम रिमझिम फुहारे
पतझड़ है तो वसंत भी तो है
हर मौसम के अपने - अपने रंग
अपने- अपने ढंग
जीवन भी तो यही है
कभी धूप
कभी छांव
कही पतझड़
कही वसंत
तब भी जब आता है इंद्रधनुष
तब वह भी लगता प्यारा
जीवन को बनाता न्यारा
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