Friday, 16 July 2021

घर होकर भी घर नहीं

घर तो वह होता है
जहाँ अपनापन होता है
अपने रहते हैं
अधिकार होता है
हर कोने पर
अपनी इच्छा से विचरण होता है
हम जो चाहे जब चाहे कर सकते हैं
किसी की बंदिश नहीं
जहाँ कहने और सुनने का हक होता है
घर में हम मेहमान नहीं होते
दो - चार दिन या छह महीने
किसी की कृपा के मोहताज नहीं  होते
पूरा हक होता है तब उस घर का मतलब होता है
केवल कर्तव्यों की  दुहाई दी जाती हो
अधिकार का हनन हो
वह घर नहीं
बस स्वार्थ ही हो
मन में भेदभाव हो
मुखिया ही सर्वेसर्वा हो
बाकी सब बेकार हो
एक का कुछ नहीं
दूसरे का सब कुछ
यह भावना सर्वोपरि हो
बस अपना देखो
अपना लाभ
तब वह घर नहीं सराय होता है
प्रेम और सम्मान मांग कर भीख में मिले
अधिकार के लिए जद्दोजहद हो
यह जताया जाय
तुम्हारा क्या है
उस घर को घर कैसे माने
मन में कसक होती है
घर होकर भी घर नहीं।

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