पसंद और नापसंद
यह हमें कहाँ याद रहा
बस दूसरों की पसंद का ख्याल रहा
सबको खिलाया तब खाया
सबको नए कपडे लिए पर अपने लिए भूल गए
सबको सुलाकर सबसे बाद में सोया
सबका ख्याल रखा
सबकी जरूरतों का ध्यान रखा
अपने तन - मन की पीड़ा भूल गए
तब भी बहुत खुश थे
न कोई गिला - शिकवा
बस मेरा परिवार खुशहाल रहें
पीड़ा तो तब होती है
जब अपने कहते हैं
तुमने किया ही क्या है
तुम्हें तो कोई सहूर नहीं है
बात करने का तरीका नहीं है
हमने ही जिसे सिखाया
उसी ने ऑख दिखाया
तब लगता है बुरा
मत करें कोई प्रशंसा
पर मीन मेख तो न निकाले
हमने कोई एहसान नहीं किया
बस अपना कर्म किया
पसंद और नापसंद
यह हमें कहाँ याद रहा।
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Sunday, 29 August 2021
पसंद और नापसंद
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