Sunday, 29 August 2021

पसंद और नापसंद

पसंद और नापसंद
यह हमें कहाँ याद रहा
बस दूसरों की पसंद का ख्याल रहा
सबको खिलाया तब खाया
सबको नए कपडे लिए पर अपने लिए भूल गए
सबको सुलाकर सबसे बाद में सोया
सबका ख्याल रखा
सबकी जरूरतों  का ध्यान रखा
अपने तन - मन की पीड़ा भूल गए
तब भी बहुत खुश थे
न कोई गिला - शिकवा
बस मेरा परिवार खुशहाल रहें
पीड़ा तो तब होती है
जब अपने कहते हैं
तुमने किया ही क्या है
तुम्हें तो कोई सहूर नहीं है
बात करने का तरीका नहीं है
हमने ही जिसे सिखाया
उसी ने ऑख दिखाया
तब लगता है बुरा
मत करें कोई प्रशंसा
पर मीन मेख तो न निकाले
हमने कोई एहसान नहीं किया
बस अपना कर्म किया
पसंद और नापसंद
यह हमें कहाँ याद रहा।

No comments:

Post a Comment