बेबसी क्या होती है
यह उससे पूछो
जिस पर गुजरती है
दो जून भोजन के बदले न जाने क्या-क्या करना पडता है
जलालत सहना पडता है
बातें सुननी पडती है
बेबसी क्या होती है
वह उस बच्चे से पूछो
जो पढना तो चाहता है
पर बचपन से ही मजदूरी करनी पडती है
बेबसी क्या होती है
यह उस बेघर से पूछो
जिसके पास घर नहीं
सर पर छत नहीं
फुटपाथ पर
गटर के किनारे जीवनयापन करते हैं
बेबसी क्या होती है
उस औरत से पूछो
जिसका पति शराबी होता है
रोज मार खाती है
गाली सुनती है
सब बर्दाश्त करती है
बेबसी क्या होती है
उस पिता से पूछो
जो अच्छा दान - दहेज न देने के कारण बेटी के लिए योग्य वर नहीं ढूंढ पाता
बेबसी क्या होती है
उस विधवा से पूछो
जो न जाने कितने निगाहों का सामना करती है
डरती रहती है किसी से बात करने में
अच्छा पहनने - ओढने में भी सकुचाती है
कब कौन कुछ तोहमत न लगा दे
बेबसी क्या होती है
उस औरत से पूछो
जिसे बच्चा नहीं है
बांझ कह कर संबोधित किया जाता है
बेबसी क्या होती है
उस पढी - लिखी औरत से पूछो
जो योग्यता होने के बावजूद भी
घर से बाहर निकल कर काम नहीं कर सकती
अपनी स्वतंत्र पहचान नहीं बना सकती
पति की आज्ञा ही सर्वोपरि
बेबसी क्या होती है
उस माता - पिता से पूछो
जिनके बच्चे गलत राह पर चल रहे हैं
सब जानते हुए भी वे कुछ नहीं कर सकते
बेबसी क्या होती है
उस पति - पत्नी से पूछो
जो नौकरी और ट्रांसफर के कारण चाहते हुए भी जीवन साथ - साथ नहीं गुजार सकते
विवाहित होते हुए भी बस छुट्टी में मिल पाते हैं
सुख - दुख के भागीदार समय पर साथ नहीं रहते
तुम कहीं तो हम कहीं वाली बात
बेबसी क्या होती है
यह उस व्यक्ति से पूछो
जब अपना बनाया हुआ मकान
उसी में एक कोने में डाल दिया जाता है
दो रोटी भी उपेक्षा से मिलती है
यही नहीं कभी-कभी तो घर से बाहर
कुछ नहीं कर सकते
बेबसी क्या होती है
जहाँ जिंदगी के बदले मौत मांगी जाती है
पर वह भी नहीं आती
लाचार ,निराश पडा रहता है
अपने शरीर के अंग भी साथ नहीं देते
दूसरों पर निर्भर
बेबसी क्या होती है
यह उस दिव्यांग से पूछो
जिसके पास शरीर के किसी न किसी अंग में डिफेक्ट होना
सब करना चाहते भी फिर भी मजबूर
बेबसी क्या होती है
उस किन्नर से पूछो
जो न पुरूष है न स्त्री
माता - पिता भी उसे नहीं चाहते हैं
समाज तो जिस नजर से देखता है
वह तो है ही
बेबसी क्या होती है
उस पिता से पूछो
जिसके कंधों पर
उसके जवान बेटे की अर्थी उठानी पडी हो
कहीं न कहीं
सब कुछ होते हुए भी
व्यक्ति लाचार हो जाता है
न खुल कर जीता है न मरता है
पिज्जा- बर्गर की बात छोड़ो
जानवर के साथ ही कचरे के ढेर में रोटी ढूंढता है
तो कहीं पकवान सामने होकर भी
खा नहीं पाता है
तब बेबसी की कोई परिभाषा नहीं
सबकी बेबसी की अपनी-अपनी वजह ।
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