Thursday, 21 October 2021

बेचारा कुली

मैं एक कुली हूँ
बोझा उठाना मेरा कर्म और धर्म है
यह मेरी आजीविका का साधन है
गाडी रुकी नहीं कि खिड़की से झांक  कर लोग मेरी प्रतीक्षा में आतुर
मैं भी भागते जाता था
आज मैं तो वही हूँ
वक्त बदला है
नए-नए तरह के गराडी वाले बैग
जिनको आराम से खींच कर ले जा सकते हैं
सामान भी कम हो गए हैं
पहले पूरे घर - परिवार के लिए
एक नहीं न जाने कितने सूटकेस  , बोरे , बेडिग रहते थे
अब लोग सीमित साधन उपलब्ध,  सामान सीमित
तब लोग मुझे ढूंढते थे
आज मैं ढूढता हूँ
कोई मिले जिसका बोझ मैं सर और कंधे पर लेकर चलूँ
क्योंकि  बरसों से बोझ ढोया है
यही मुझे आता है
मेरा लाल पहरावा यह हमारी पहचान है
हम पर लोग भरोसा करते थे
सामान जगह पर लगा देते थे
हम आगे-आगे लोग पीछे  पीछे भागते आते थे
अब वह दिन कहाँ रहे
अब पैर नहीं पहिए  का जमाना है
इसलिए कुली भी बेचारा है ।

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