Saturday, 9 October 2021

उस पल को तो जी लूँ

उठने का मन नहीं है
अलसाया सा लग रहा है
तबियत कुछ नासाज है
रात भर नींद नहीं आई
पुराने ख्याल परेशान करते रहे
मैं गणित करती रही
जोड़ती- घटाती रही
कहाँ क्या चूक हुई
क्या खोया और क्या पाया
अतीत के भंवर में गोते लगाती रही
कभी स्वयं को दोषी तो कभी भाग्य को दोषी मानती रही
क्या अच्छा हुआ
क्या बुरा हुआ
हुआ तो यह क्यों हुआ
इस प्रश्न का उत्तर ढूढती रही
अतीत में  गोता लगाना
भविष्य का ताना - बाना बुनना
यही करती रही
तब तक सुबह हो गई
उठना ही पडा
खिड़की से बाहर दृष्टि डाली
भगवान भास्कर पधार रहे हैं
चिडियाँ चहचहा रही है
कुछ पंछी झुंड में उडे जा रहे हैं
सब तरफ चहल-पहल
गाडी- बस की आवाज
सब बता रहे हैं
रात्रि खत्म हुई
और मैं अभी तक उसी को लेकर बैठी हूँ
जो गुजरा सो गुजरा
अब तो जाग जाऊं
अतीत को छोड़ वर्तमान में विचरण करूँ
जो गया वह तो आ नहीं सकता
जो साथ है उस पल को तो जी लूँ।

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