Monday, 18 October 2021

जहाँ थे वहीं हैं

हम बैठे हैं
दरवाजे पर आस लगाए
कब कोई डोर बेल बजाएं
दरवाजा खोले
हम बैठे हैं
फोन की घंटी का इंतजार करते
कब घनघनाए
हम जल्दी से उठाएं
कोई तो हाल-चाल पूछे हमारा
कोई तो खोज - खबर ले हमारा
अपने न सही पराए ही सही
कोई तो उत्सव - त्यौहार पर हमें बुलाएं
शादी - ब्याह और जन्मदिन पर आमत्रिंत करें
हमें भी पार्टी में शामिल करें
रिसोर्ट पर ले जाए
लेकिन कोई नहीं समझता
सब कहते हैं
उम्र हो गई है
अब घर बैठे रहो
आराम करों
अरे मन तो अभी भी बच्चा है
कुछ बची हुई इच्छाएॅ  हैं
हमें भी घूमने- फिरने का मन करता है
पहले जिम्मेदारी थी तब कर नहीं पाएं
आज मजबूरी है
जो घर भरा रहता था
आज खाली खाली सा लगता है
जहाँ कहकहे गूंजते थे
अब मायूसी छाई है
पहले भी इंतजार करते थे
जब तक लौट कर बच्चे घर न आ जाए
चैन नहीं मिलता था
नींद नहीं आती थी
आज भी इंतजार है
कुछ पल के लिए आ जाएं
हमारे साथ समय बिता ले
तुम लोगों के पास न तब समय था
न अब है
हमीं जो हैं
जहाँ थे वहीं है ।

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