किसी ने न गोली चलाई
न किसी ने गाडी चढाई
दुर्घटना तो हुई
जान भी गई
उसकी भरपाई कैसे
उनकी मांग मान ली गई
कानून वापस ले लिया गया
सात सौ जाने गई
उसका क्या
साल भर होने को आ रहा है
अपना घर - बार छोड आंदोलन पर बैठे हैं
कोई खुशी में तो नहीं
ठीक है जो हुआ सो हुआ
पर एक बात समझ में नहीं आती
सरकार वास्तव में झुक गई
सरकार को अपनी गलती समझ आ गई
दवाब में आ गई
चुनाव सर पर है
कहीं असली वजह यह तो नहीं
अगर यह बात है तो यह लोकतंत्र के लिए घातक है
अगर कानून सही था भलाई के लिए था
फिर रद्द क्यों??
बहुत सी बातें पब्लिक समझ नहीं पाती
बाद में समझ आता है
करोना वैक्सीनेशन को ही देख ले
पहले क्या कोई तैयार था नहीं न
लीक से अलग हटकर भी काम करना पडता है
नोटबंदी भी कौन चाहता था
न जाने कितना झेलना पडा जनता को
परिणाम क्या
वहीं ढाक के पात
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