बेटी बचा ली
आने दिया इस संसार में
उसे प्यार दिया
अपनापन दिया
बेटे के बराबर दर्जा दिया
कोई भेदभाव नहीं किया
बेटी पढा ली
उसको पंख फैलाना है
ऊंची उड़ान भरनी है
सपनों को साकार करना है
आत्मनिर्भर बनाना है
अब वह सक्षम है
अपने पैरों पर खडी है
अपने फैसले स्वयं ले रही है
फिर भी चिंता है
क्योंकि वह बेटी है
वह असुरक्षित है
घर से लेकर सडक तक
कहीं भी सुरक्षित नहीं है
सरकार का तो नारा है
बेटी बचाओ , बेटी पढाओ
पर इन राक्षसों से हैवानो से
कौन बचाएगा
इससे तो अच्छा होता
उसे इस बर्बर संसार में आने ही नहीं दिया जाता
जब जलना है
मरना है
बलात्कार होना है
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