हमारे सपने साकार हुए
जो चाहा वह संभव हुआ
बच्चों ने उडान भरी
सुदूर सात समंदर पार
हम भी तो यही चाहते थे
यह नहीं पता था
कितना बडा खामियाज़ा भुगतना है
जो घर गुलजार रहता था
आज वीरान हो गया
सपने तो साथ ही देखे थे
लेकिन अब साथ नहीं
इस उम्र में अकेले रह गए
यह घरौंदा बडे प्यार से बनाया था
बडी लगन और जतन से
मेहनत और त्याग से
सोचा था सब साथ रहेंगे
अफसोस हमारे सिवा अब यहाँ कोई नहीं
फोन पर हाल-चाल पूछ लिया
ज्यादा हुआ तो कुछ पैसे भेज दिए
अपनों की कमी क्या पैसे से पूरी हो सकती है
सोचते हैं कि
इस देश में ही रहते
तब कितना अच्छा होता
कम से कम पास तो होते
महत्त्वाकांक्षा की बलि पर तो न चढ पाते
दोष किसका दे
हमारा या उनका
शायद किसी का नहीं
समय की मांग है
यह किसी एक की या मेरी नहीं
हर घर की बात है
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