एक वाकया कल घटा
टैक्सी से उतरे तो बयासी रूपया हुआ, टैक्सी वाले को सौ का नोट दिया तो वह कहने लगा
छुट्टा नहीं है
अब बारह रूपये का सवाल था
एक - दो रूपया होता तो छोड़ देते
आसपास कोई दुकान भी नहीं थी कि ले लेते
बाहर ही खडे हो जेब खंगालने लगे
पति देव और मैं बाहर खडे हो अपने - अपने पैसे गिनने लगे अचानक गिनते- गिनते एक दस का नोट नीचे जो छोटा सा गटर था उसमें गिर गया
ऊपर जाली लगी थी तब भी नोट दिख रहा था पर कुछ कर नहीं सकते थे
कैसे कैसे गिन कर उसे पैसे दिए
अफसोस हो रहा था
एक बार सोचा कि उसी को दे देते
लेकिन दूसरे ही क्षण मन ने कहा
नहीं वह तो अचानक घट गयी दुर्घटना थी
पर उसको दिया होता तो उसकी इस आदत को बढावा देना था
न जाने कितने लोगों की मजबूरी का ये फायदा उठाते है
लोग जल्दी में या मजबूरी में छोड़ देते हैं
ऐसा वाकया पहले भी हुआ है पर वो दो या चार रूपये थे
इस बार तो मन नहीं माना
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Monday, 20 December 2021
गलत को बढावा देना भी गलत ही है
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