सर्द हवा
खुशनुमा मौसम
मिट्टी की सौंधी सौंधी महक
हल्की हल्की बूंदाबांदी
फूलों पर ओस की बूंदे
कभी-कभी झिलमिलाती मोती सी
सूरज की किरण जब पडती
सूरज ऑख मिचौली करता
कभी दिखता कभी बादलों में छुप जाता
पेडों पर सरसराते पत्ते
झूमती डालिया
चहचहाते पंछी
मानों प्रकृति मुस्करा रही है
खिली खिली सी है
हमें भी तो यह खुशगवार लग रहा है
जब आसपास सब सुहावन हो
मनभावन हो
तब गीत गुनगुनाता हूँ
प्रकृति की प्रशंसा करता हूँ
उसके सौंदर्य में अपने गीतों से चार चाँद लगा देता हूँ
प्रकृति और हमारा
पुराना नाता है
सदियों बीत गए
वह अनवरत अपना कार्य कर रही है
हम भी कहाँ पीछे हैं
उसके ऊपर न जाने क्या और कितना कुछ लिख डाला
उसके हर रूप का वर्णन
इसी ने तो हमें कालिदास बनाया
इसी ने तो हमें पंत और प्रसाद बनाया
इसे भी अगर पढना आता
तब यह भी देखती
हम इसकी प्रशंसा में क्या क्या कसीदे काढते है
खूबसूरती के साथ-साथ प्रलय का भी वर्णन बखूबी करते हैं
इसको जीवित रखते हैं
यह है तभी तो हम है
जीना - मरना साथ
No comments:
Post a Comment