दो कुल की मर्यादा थी
मेरे पिता और भाई को भीष्म हानि न पहुंचाएं
अगर मन से हामी नहीं भरी
तब बलात् अपहरण कर ले जाएंगे
काशी नरेश की कन्याओं की तरह
अपने पोते अंधे धृतराष्ट्र के लिए विवाह का प्रस्ताव लाएं थे
गांधार कन्या शिव भक्त गांधारी के लिए
पिता तो कुछ नहीं कह सकें
भ्राता शकुनि को यह रास नहीं आया
धृतराष्ट्र के साथ क्यों, पांडु के साथ क्यों नहीं
घटना क्रम कुछ और रूप लेती
तुम ने ऑखों पर पट्टी बांध ली
तुम पतिव्रता थी
सती थी
तब तो यह उचित नहीं था
अंधे धृतराष्ट्र को सहारा देती
अपने पुत्रों को सही मार्ग दिखाती
तब शायद इतना भयावह परिणाम नहीं होता
सौ पुत्रों की माँ संतान विहीन नहीं होती
तुमने जो क्रोध में अपने गर्भ पर मारा था
जलन वश
क्योंकि कुंती तुमसे पहले गर्भवती हो गयी थी
इसी ईष्या की उपज कौरव थे
फिर तुम्हारे भ्राता शकुनि
उनको विष भरे विचारों के खाद पानी देते रहें
पांडवो के प्रति जहर भरते रहें
वह शायद अपनी जगह सही थे
बहन के साथ हुए अन्याय को गांधार राजकुमार शकुनि सहन न कर पाएं
भीष्म से प्रतिशोध लेना था
पर वह यह शायद भूल गए थे
अप्रत्यक्ष रूप से अपनी ही बहन के कुल के नाश का कारण बन रहा हूँ
तुम तो समझदार थी
अगर वरण किया तब अपना फर्ज निभाती
अंधे की लाठी बनती
उसको रास्ता दिखाती
तुम पत्नी और माँ दोनों थी
पर एक भी फर्ज नहीं निभाया
तुम तो स्वयं अंधी बन ऑखों पर पट्टी बांध ली
महाभारत का एक कारण तो तुम भी थी गांधारी
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