सब मन पर छा जाए ऐसा भी नहीं हैं
कुछ का बोलने का लहजा
समाचार संपादन और स्वभाव
दर्शकों के दिलों में घर कर जाता है
आज के टेलीविजन चैनलों में चीखते- चिल्लाते पत्रकार
उसमें एक अलग सा शख्स जेहन में उभर कर आता है
वे हैं कमाल खान
गजब की नशीली आवाज
उर्दू मिश्रित शब्द
नम्रता और मिठास
शेरों- शायरी से खत्म
जो दर्शक को कुछ क्षण सोचने को मजबूर कर देता
फिर वह चाहे राम मंदिर जैसा ज्वलंत मामला हो
लखनऊ की नफासत उनमें दिखाई देती थी
उत्तर प्रदेश और लखनऊ ही ज्यादा तर उनका क्षेत्र था
कभी ऐसा नहीं लगा कि
यह एक मुस्लिम शख्स राम मंदिर, बनारस या और सांप्रदायिक मसलों को इतनी आसानी से विनम्रता से बता रहा है
न किसी नेता पर आक्षेप न दोषारोपण
अपनी बात भी कह जाना
कमाल की रिपोर्टिंग थी कमाल की
ऐसे पत्रकार शायद अब सुनने को मुश्किल से मिले
एन टी वी की क्षति तो हैं ही
पत्रकारिता जगत की भी क्षति है
भावभीनी श्रद्धांजलि सर ।
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