सब कुछ था वहाँ
मन का सुकून नहीं था
एक घुटन सी होती थी
अंदर ही अंदर मन मसोसकर रह जाती
क्यों खुशी नहीं मिलती
हर वक्त उदासी का छाना
तब ऐसा लगा
अब यहाँ से हट जाना
क्यों होता है ऐसा
जब कुछ लगता है पराया
नहीं लगता है अपना
जबकि सब अपने ही
सब अजीज हैं
मुझे जान से प्यारे हैं
उनकी हर चोट लगती मेरी चोट
उनका दुख - दर्द
लगता मेरा अपना
हर वक्त उनकी सलामती की दुआ
यही मांगती हूँ मैं हमेशा
तब इस मन का क्या करें
क्यों विचलित होता है
कहीं न कहीं कोई तो कमी है
संबंधों में कुछ तो दुरावट है
ऊपर से कुछ
अंदर से कुछ
जो है वह दिखता नहीं
जो नहीं है वह दिखता है
क्यों नजदीकीयां बस रही है दिखावे की
जबकि मन से पास - पास
एक का कांटा लगा
दूसरे को चुभता है
फिर भी वह गर्माहट नहीं
तभी होता है
लगता है अजनबीपन
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Monday, 24 January 2022
लगता है अजनबीपन
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