Monday, 24 January 2022

लगता है अजनबीपन

सब कुछ था वहाँ
मन का सुकून नहीं था
एक घुटन सी होती थी
अंदर ही अंदर मन मसोसकर रह जाती
क्यों खुशी नहीं मिलती
हर वक्त उदासी का छाना
तब ऐसा लगा
अब यहाँ से हट जाना
क्यों होता है ऐसा
जब कुछ लगता है पराया
नहीं लगता है अपना
जबकि सब अपने ही
सब अजीज हैं
मुझे जान से प्यारे हैं
उनकी हर चोट लगती मेरी चोट
उनका दुख - दर्द
लगता मेरा अपना
हर वक्त उनकी सलामती की दुआ
यही मांगती हूँ मैं हमेशा
तब इस मन का क्या करें
क्यों विचलित होता है
कहीं न कहीं कोई तो कमी है
संबंधों में कुछ तो दुरावट है
ऊपर से कुछ
अंदर से कुछ
जो है वह दिखता नहीं
जो नहीं है वह दिखता है
क्यों नजदीकीयां बस रही है दिखावे की
जबकि मन से पास - पास
एक का कांटा लगा
दूसरे को चुभता है
फिर भी वह गर्माहट नहीं
तभी होता है
लगता है अजनबीपन

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