सारी जिंदगी तुम्हारी खिदमत में
यकीन किया तुम पर
अपना सर्वस्व समझा
सब कुछ न्योछावर कर दिया
कभी अपने मन की नहीं करी
तुम्हारे ही अनुसार चलती रही
अपने को स्वयं को भूल गई
अपना व्यक्तित्व तुममें समाहित कर दिया
मैं भी इंसान हूँ
मेरे भी सीने में एक छोटा सा दिल है
जो मचलता है
ठुनकता है
शिकायत करता है
पर तुमको इसकी परवाह कहाँ
तुमको तो स्वयं से ही मतलब
तुम्हारा घर - संसार व्यवस्थित
बच्चे सैट्ल्ड
समाज में मान - सम्मान
यह सब अचानक नहीं
इसमें मेरा त्याग समाया है
जो तुम्हें कभी दिखा नहीं
अपने ही गुरूर में रहे हमेशा
अगर मैं न रहती
तब यह गुरुर भी नहीं रहता
पर यह बात तुम कहाँ समझोगे
मर्द हो न
पत्थर दिल हो
पत्थर से कितना भी टकराओ
वह तो घाव ही करेंगा
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