ख्याल आया सुबह का
क्या नाश्ता बनेगा
क्या खाना बनेगा
पानी समय से आएगा या नहीं
कौन सी सब्जी है
क्या सामान मंगवाना है
यह सोचते सोचते ऑख लग गई
सुबह अलार्म बजा
हड़बड़ाकर उठी
पानी आ गया था
दूध गरम करने को रख दिया
चाय चढा दी
उसी में अपना कुछ वैयक्तिक कार्य भी करती रही
सब निपटाते दोपहर होने को आई
खाना खाकर लेटी ही थी
शाम के चाय - नाश्ते और रात के खाने का विचार
फिर वही सब्जी और सामान घुमाने लगे
सोचने लगी
भोजन के सिवा और कुछ ख्याल नहीं
हम खाने के लिए जीते हैं
जीने के लिए खाते हैं
सोच सोच कर असमंजस में पड गई
पेट ही सब कुछ है
पेट की स्वच्छता से शुरूआत
पेट भरने तक
इसी में सब लगे हुए हैं
अगर पेट न हो तो कोई काम ही न करें
वह चाहे कोई भी जीव हो
पेट ने बांध रखा है अपने से
उसी के लिए सुबह से ही जद्दोजहद शुरू
न जाने कितने पाप बेलने पडते हैं
तब जाकर यह पेट भरता है
यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी
पापी पेट का सवाल है भाई
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