हमें घर के मत समझो
मेहमान ही समझो
मेहमानों को अच्छे बर्तन में स्वागत
हमें तो पुरानी स्टील की प्लेट
वह भी दादाजी के नाम की खुदी हुई
कहीं ऐसा तो नहीं
हम घर के व्यक्तिओ को टेक फाॅर ग्रान्टेड ले लेते हैं
अच्छा खाना
अच्छा बिस्तर
अच्छे सामान
यह सब मेहमानों के खाते में
उनके लिए बचाकर रखना
यह सही है
भारतीय परंपरा में मेहमान भगवान होता है
दिखावा भी करना पडता है
अपनी हैसियत दिखाने के लिए
भले ही वह पडोसी से मांगा हुआ हो
और यह सब कौन करता है
मध्यम वर्ग
गरीब के घर जो है
वह खुद भी खाएगा
मेहमान को भी देगा
अमीर को किसी बात की कमी नहीं
तब दिखावा करने का सवाल ही नहीं
रहा बेचारा
मिडिल क्लास
अपने सूखी रोटी खाएगा
मेहमान के लिए
पुरी - परांठा , मटर पनीर , गाजर का हलवा
यह सब देगा
जिससे उसका एक हफ्ते का बजट गडबडा जाएंगा
पर असलियत नहीं आने देगा
क्या फायदा इससे
अच्छा जीने और रहने का हक सबका
तब अतिथि के नाम पर
जो हैं जैसे हैं
वैसे रहिए
परिवार के सदस्य को भी सबका आनंद लेने दे
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