बहुत भुलक्कड हो गई हूँ
सोचती कुछ हूँ
होता कुछ है
करने जातो हूँ कुछ
हो जाता है कुछ
कभी नमक डालना भूल गई दाल में
कभी मिर्च डालना भूल गई सब्जी में
काम याद रहता है
नाम याद नहीं रहता
बाजार लेने जाती हूँ
एक न एक जरूरत की चीज भूल ही जाती हूँ
कभी चश्मा भूल जाती हूँ
कभी पर्स
फिर पूरे घर में ढूढती रहती हूँ
पता चलता है
वह कहीं पास ही पडा होता है
दिखाई नहीं देता
व्यक्ति को सामने देख मास्क में पहचान नहीं पाती
ऐसा लगता है
कहीं देखा है
जब आवाज सुनती हूँ तब भान होता है
हाँ एक बात है
कडवी यादें नहीं भूल पाती
वह मन में और मजबूती से जम कर बैठी है
गाहे बगाहे परेशान करती रहती है
याददाश्त जाने का डर समा गया है
किसी के घर जाती हूँ
असली वजह भूल जाती हूँ
कुछ भूलना अच्छा है
वह है कडवाहट
और तो सब यादें चुस्त दुरुस्त रहनी चाहिए
तभी तो जीने का मकसद होगा
जब मन करेंगा
यादों के चक्कर लगा आएंगे
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