Sunday, 30 January 2022

भूलना

आजकल लगता है
बहुत भुलक्कड हो गई हूँ 
सोचती कुछ हूँ 
होता कुछ है
करने जातो हूँ   कुछ 
हो जाता है कुछ 
कभी नमक डालना भूल गई दाल में 
कभी मिर्च डालना भूल गई सब्जी में 
काम याद रहता है
नाम याद नहीं  रहता
बाजार लेने जाती हूँ 
एक न एक जरूरत की चीज भूल ही जाती हूँ 
कभी चश्मा भूल जाती हूँ 
कभी पर्स 
फिर पूरे घर में ढूढती रहती हूँ 
पता चलता है
वह कहीं पास ही पडा होता है
दिखाई नहीं देता 
व्यक्ति को सामने देख मास्क में पहचान नहीं पाती 
ऐसा  लगता है
कहीं देखा है
जब आवाज  सुनती हूँ तब भान होता है
हाँ एक बात है
कडवी यादें नहीं भूल पाती 
वह मन में और मजबूती से जम कर बैठी है
गाहे बगाहे  परेशान करती रहती है
याददाश्त  जाने का डर समा गया है
किसी के घर जाती हूँ 
असली वजह भूल जाती हूँ 
कुछ भूलना अच्छा है
वह है कडवाहट 
और तो सब यादें चुस्त दुरुस्त रहनी चाहिए 
तभी तो जीने का मकसद होगा 
जब मन करेंगा
यादों के चक्कर लगा आएंगे 

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