ज्यादा व्रत - उपवास नहीं करती
ज्यादा प्रथा और परम्परा का पालन नहीं करती
कभी-कभी लगता है
मैं नास्तिक हूँ क्या
पर ऐसा भी नहीं है
मुझे ईश्वर के ऊपर ही विश्वास है
मैं हर मुश्किल घडी में उसे ही याद करती हूँ
तब मैं क्या स्वार्थी हूँ
केवल काम के लिए भगवान को याद करती हूँ
मैं भगवान की बडी भक्त भी नहीं स्वयं को बता सकती
तब क्या करूँ
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