घुप्प अंधेरा
कालिमा से घिरा आसमान
उसमें भी अपना असतित्व बनाए रखना
अपनी चमक को बरकरार रखना
कभी घटना कभी बढना
कभी ग्रहण का साया
हार नहीं मानना
जिद्द पर अडे रहना
कितना भी घना अंधेरा हो
मुझे कोई फर्क नहीं पडता
चरैवति चरैवति
यह स्वभाव है मेरा
अपनी चांदनी का प्रकाश फैलाना
अंधेरे में भी राह बनाना
मैं जब तक रात है
तब तक तो रहूंगा ही
कल की बात कल सुबह
आज की रात्रि मेरी है
मैं अपना धर्म और कर्म कर रहा हूँ
यहाँ तक कि अकेले नहीं
छोटे-छोटे तारों को भी साथ लेकर चल रहा हूँ
सूरज जैसा प्रकाश तो नहीं
मधुर और शीतल चांदनी है
वही सबको देने का प्रयास
यही मेरा छोटा सा जीवन
एक रात का
जब तक रात तब तक मैं भी चलायमान
No comments:
Post a Comment