अपनी हद में रहना जानता हूँ
बडे नाजो से लगाया
समय - समय पर खाद - पानी देते रहें
मेरी अच्छी तरह से देखभाल की
गरमी , बरखा और ठंड में ध्यान रखा
जब - जब जरूरत पडी
मुझे काटा - छाटा
मुझे आकार दिया
कभी धूप में तो कभी छाया में रखा
आज मैं जब बडा हो गया हूँ
फल - फूल रहा हूँ
तब वे भी बडे गुरूर से देखते हैं
देख देख मुस्कराते हैं
मन ही मन खुश होते हैं
मैं उनको जानता हूँ
उनके मन की बात समझता हूँ
आखिर उनकी ही देख रेख में पला - बढा
अगर वे नहीं होते तब
पता नहीं किस चिडिया के पेट में जाता
किस पशु का चारा बनता
किसकी कुल्हाडी चलती
हर तरफ से सुरक्षा की
मुझे अपने आंगन में जगह दी
यह तो उनका एहसान है
इसका मुझे भी एहसास है
उनका यह कर्ज चुकाना तो संभव नहीं
हाँ अपनी छाँव देकर जरूर थोडा सुकून दे सकता हूँ
अपने फल - फूल से उनकी मदद करू
उनके चेहरे पर थोड़ा सा सुकून देखूं
यही चाहता हूँ
No comments:
Post a Comment