मुझे मेरी कलम
जबसे इसे पकडा
तब से यह छूटी नहीं
हाॅ अपना रूप बदलती रही
पहले सरपत और बांस की
फिर स्याही और दावात की
फिर बालपेन
कभी समय मिला
कभी नहीं मिला
हाँ लेकिन हाथ से कभी छूटी नहीं
यह हमेशा मेरे पास रहती है
इसके बिना तो मैं बेचैन हो जाती हूँ
यह मेरे वजूद की पहचान है
हस्ताक्षर से लेकर मन की भावना उकेरने तक
दिखने में तो छोटी ही है
पर इसका कोई सानी नहीं
बडे बडे काम इसी के बल पर
आज हाथ कांपने लगे हैं
डर लगता है
कहीं यह न छूट जाएं
मैं इसे छोड़ना नहीं चाहता हूँ
सब भले छूट जाएं
इसका साथ कभी न छूटे
यह हाथों में सजती रहें
कुछ लिखती रहें
बडी प्यारी है
मुझे मेरी कलम
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