डर लगता है
मृत्यु से
बिलकुल सही
इससे तो हमेशा डर लगता है
एक यही सत्य जीवन का
और सब तो अनिश्चित
आज हर शख्स डरा है
क्या होगा
कहना मुश्किल
स्वयं को बचा रहा
जीवन ठहर सा गया
कब तक यह ठहराव
राम जाने
कितना बेबस और लाचार है
कहने को तो शक्तिशाली
पर उसके हाथ में कुछ नहीं
कुछ भी तो नहीं
भाग्य पर निर्भर
प्रकृति का किस रूप में कहर
इसका तो अंदाजा भी नहीं
सब जीवों में बुद्धिमान
आज उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही
एक वायरस के प्रकोप से
मन में समा गया है खौफ
कल कल और आज आज
करते-करते न जाने पहुंच जाए किस हाल
दया आ रही है
अपनी ही लाचारी पर
अपनी ही बेबसी पर
सबसे हो रहा है मोहभंग
क्या यही है हमारी औकात
कभी परिस्थितियों का मारा
कभी दुर्भाग्य से बनता बेचारा
कभी सुनामी कभी भूकंप
कभी दुर्घटना कभी करोना
हर हाल में है रोना
भविष्य की चिंता में रत
हमारा वर्तमान भी तो
रहता है हमेशा अधर में
क्या ख्वाब क्या कल्पना
क्या आशा क्या आंकाक्षा
सब रह जाते हैं यही धरे
डर लगता है मृत्यु से
बिलकुल सही
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