वह अपनों से होता है
कितना भी दूर चले जाओ
रूठ जाओ
क्रोधित हो जाओ
बातचीत बंद कर दो
फिर भी वह मन में हिलोरे मारता रहता है
अपनों की सलामती के लिए दुआ करता रहता है
ऊपर से नाराजगी लेकिन दिल की बात न पूछो
दिल तो दिल ही होता है
उसमें अपनों की जगह निश्चित होती है
परायों से कितना भी प्रेम कर लो
बात कर लो मिठास के साथ
अपना सर्वस्व न्योछावर कर दो
फिर भी पराया तो पराया ही होता है
वह अपना तो कभी हो ही नहीं सकता
यह डर हमेशा रहता है
यह न जाने किस बात पर दूर चला जाए
इसी वजह से हम प्यार और अपनत्व दिखाते रहते हैं
वह अपनों की जगह कभी नहीं ले सकता
वह पास होकर भी दूर
अपना दूर होकर भी करीब
यही तो बात है
अपनों और परायों में
एक ईश्वर का बनाया हुआ
एक स्वयं की निर्मिति
फर्क तो है ही
अपना तो अपना ही होता है ।
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