माँ तो माँ है
जिसकी कोई थाह नहीं
जिसकी कोई राह नहीं
जिसे किसी की परवाह नहीं
बस संतान को छोड़
सारी राह उसी तक
सारे सपने उसी तक
सारा प्यार उसी तक
कितना गहरा
वह तो सागर से भी परे
किसी की औकात नहीं
माँ के प्यार का मूल्य लगा सके
माॅ तो माँ है
कौन समझेगा उसके मन को
जिसका मन उसका ही नहीं
वह तो संतान में ही रमा
कौन समझेगा उसकी भूख को
जिसका भोजन ही संतान के लिए
उसे अपना स्वाद कहाँ याद
वह तो बच्चों में ही घुल मिल गया
उसकी ऑखे तो हमेशा देखती बच्चों को
वह तो अपने को भूल चुकी
बच्चों के साथ ही सोना जागना
बच्चों में ही उसका सुख समाया
जिसका कुछ अपना नहीं
वह तो बस है माँ
No comments:
Post a Comment