Monday, 2 May 2022

आज की मजबूरी

पेट - पीठ दोनों है एक
चल रहा लकुटिया टेक
निराला जी के यह भिक्षुक 
हर गली - चौराहे पर मिल जाएंगे
गली - चौराहे पर क्या 
हर घर में यह मिल जाएंगे
वृद्धों की यह दयनीय अवस्था है
वह फिर अमीर हो या गरीब या मध्यमवर्गीय 
गाँव हो या शहर
एक समय का वह नौजवान जो हर काम के लिए तत्पर
अपने बच्चों को अपनी हैसियत से ज्यादा देने की कोशिश 
परिवार टूट रहे हैं 
कोई इनको मन से अपने साथ रखने को तैयार नहीं 
शायद नई पीढ़ी की अपनी मजबूरी हो
कहाँ से समय निकालें 
जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति करते करते थक जाते हैं 
उनकी महत्तवकांक्षाए  उनकी उडान 
उनके बच्चों का भविष्य 
यह सब सुरक्षित करने के चक्कर में 
वह अपने बुजुर्गों की अनदेखी कर देते हैं 
हो सकता है यह मजबूरी में हो
पर वास्तविकता तो यही है
जब नारी - पुरुष समान हो
तब तो यह होना ही है

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