महाभारत दुर्योधन के हठ के कारण हुआ
धृतराष्ट्र के पुत्र मोह के कारण हुआ
द्रोपदी के अपमान के कारण हुआ
शायद नहीं
इन सबकी जड गंगपुत्र देवव्रत थे
अन्याय तो यही से शुरू हुआ
राजा शांतुन का सत्यवती से विवाह
देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा
एक युवराज से सारे अधिकार छीन गए
यहाँ तक कि विवाह और गृहस्थ जीवन का
पिता की इच्छा की बलि चढ गए देवव्रत
सत्यवती को लाए पिता के लिए
अंबा अंबिका और अंबालिका को लाए भाई के लिए
गांधारी को लाए धृतराष्ट्र के लिए
साथ में गांधार युवराज शकुनि को भी लाए
बहन का ब्याह अंधे से
यह भी तो अन्याय था
इससे तो अच्छा था पिता की इच्छा पूर्ण न करते
दासराज के प्रस्ताव को ठुकरा देते
अन्याय सहना भी तो अन्याय करने के बराबर
एक अपने समय का बलशाली शक्तिशाली युवा पिता के प्रेम की बलि चढ गया
अपना जीवन ही हस्तिनापुर के नाम कर दिया
और जो न करना था सब किया
द्रोपदी का चीरहरण चुपचाप देखते रहे
अन्याय हो रहा था पांडवों के साथ
पर दुर्योधन को नहीं छोड़ सके
क्योंकि वे हस्तिनापुर से बंधे थे
अपनी प्रतिज्ञा में बंधे थे
उनके लिए उनकी प्रतिज्ञा बडी थी
वे व्यक्तिवादी बन गए थे
समष्टिवादी नहीं
वे भीष्म बने रहे
बीज तो पहले ही सत्यवती के पिता ने बो दिया था
पहले देवव्रत का अधिकार
फिर नेत्रहीन होने के कारण धृतराष्ट्र का अधिकार
दुर्योधन ने उसे स्वीकार नहीं किया
सत्ता को काबिज किए रहा
पांडवो को वन में भटकने के लिए मजबूर किया
यहाँ भी अन्याय हो रहा था
अगर केशव न होते तब पांडव तो नहीं जीतते
कौरवों के पास एक से बढकर एक महारथी
विशाल सेना थी
प्रतिरोध किसी ने नहीं किया
विदुर को छोड़
क्योंकि वे दासीपुत्र थे
राज सिंहासन की लालसा नहीं थी
युद्ध तो होना ही था
क्योंकि दुर्योधन तो देवव्रत भीष्म नहीं था
पर सारा दोष उस पर
यह भी तो सही नहीं
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