गरल - विष जिंदगी का पिया है
कदम - कदम पर दिल आहत हुआ है
आलोचना मिली है
उपहास उडाया गया है
जिसने मुझे मजबूत बनाया है
मैं नीलकंठ नहीं जो विष गले तक ही सीमित रहें
उसको मैंने पूरे शरीर में उतारा है
तन - मन दोनों पर असर हुआ
जो आज हूँ मैं
वैसे तो पहले नहीं थी
वह भोली भाली पगली सी सीधी सी लडकी
जिंदगी की आपाधापी में न जाने कहाँ खो गयी
समय से पहले ही बडी हो गई
जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गई
न कोई जिद न रूठना - मनाना
छुटपन में ही समझदार हो गई
दुनिया को समझ गई
फिर भी दुनिया को समझा न पाई
दुनिया तो बदली नहीं
मैं अवश्य बदल गई
बस अपने में सिमट गई।
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