Saturday, 11 June 2022

यदि ऐसा होता तो

यदि ऐसा होता तो
यदि वैसा होता तो
होता तब न
हुआ नहीं
हम इसी यदि के चक्कर लगाते रहते हैं
हासिल कुछ नहीं
सिवाय पछताने के
दुखी और निराशा के गर्त में डूबने के
देखा जाय तो
नियति जब खेलती है
तब सब कुछ पलट जाता है
जीती हुई बाजी भी हम हार जाते हैं
एक ही पल में सब कुछ उलट पुलट हो जाता है
सोचा हुआ हो जाता
तब क्या कहना
यदि , लेकिन , परन्तु , फिर भी
यह केवल शब्द नहीं है
बहुत कुछ इनमें ही छिपा है
जीवन का राज
मैंने सोचा था 
बीस साल में सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा
पचास पचपन तक सब जिम्मेदारी से मुक्त
पर वह हो न सका
इस यदि ने ऐसा टांग अडाया
जिंदगी औंधे मुंह आ गिरी
अब न समझ आ रहा है
न सूझ रहा है
यह क्या से क्या हो गया
कहाँ से चले थे
कहाँ पहुँच गए
यदि वैसा हुआ होता तो
परन्तु वैसा हुआ नहीं 
लेकिन ऐसे हो गया 
फिर भी जीना तो है
मरना तो किसी समस्या का समाधान नहीं
हार मानकर चुपचाप बैठ नहीं सकते 
तब ठीक है
फिर से कमर कसकर उठ खडे हो जाओ
यदि वैसा हो गया
तब फिर क्या गम

No comments:

Post a Comment