नहीं मन करता किसी के साथ का
देख लिया
जी भर कर बतियाय लिया
मन खोल कर रख दिया
नतीजा क्या हुआ
सब जगह ढिंढोरा पीट गया
हमारी पीडा का खूब प्रचार हुआ
तरह - तरह की बातें हुई
सबके अपने - अपने ओपिनियन बने
हमारी गोपनीयता सरे आम नीलाम हुई
जिनसे न कोई वास्ता
उन्होंने भी चटखारे लिया
क्या - क्या नहीं तार - तार हुआ
इससे तो अकेलापन अच्छा है
कहने को तो समाज
कहने को तो हितचिंतक
ये तो और चिंता में डाल दिए
मन को विचलित कर गए
शांति कहीं खो गई
अब सोचते हैं
क्यों किसी पर विश्वास किया
क्यों अपने को बांटने गए
अकेला तो अकेला ही है
उसी से प्यार है
पता है न कि
वह ऐसा कुछ नहीं करेंगा
जिससे मन को ठेस पहुंचे।
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